-एंडोवस्कयूलर एबलेटिव थेरेपी से वेरीकोज वेन्ज का इलाज अब आईजीएमसी में संभव
द हिमाचल हेराल्ड, शिमला
आईजीएमसी के इतिहास में यह पहली बार है जब जांघ में वेरीकोज वेन्ज से जूझ रहे मरीजों का इलाज बिना चीरफाड़ के संभव हो पाया है।
आईजीएमसी शिमला के रेडियोलॉजी विभाग में ऐसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शिखा सूद ने एंडोवस्कयूलर एबलेटिव थेरेपी से मरीज की खराब हो चुकी खून की नसों को जलाकर उन्हें बंद कर दिया। यह पहली बार है जब ऐसा सफल आॅपरेशन आईजीएमसी में हुआ हो। 40 वर्षीय शिमला निवासी पूनम कई वर्षों से इस बीमारी को लेकर परेशान थीं। इस बीमारी में जन्म से टांग की खून की नसों के वल्व नहीं बने हुए होते हैं तथा कई कारणवश जैसी प्रेगनेंसी के बाद, लंबे समय तक खड़े होने वाले व्यवसाय के कारण यह बीमारी धीरे-धीरे विकराल रूप धारण कर लेती है जिससे कि मरीज की खून की नसें फूलने लगती हैं। उसे टांग में सूजन, दर्द, अल्सर जैसे लक्षण आने लगते हैं। पहले इस तरह की बीमारी का इलाज सर्जरी से किया जाता था परंतु अब अत्याधुनिक तरीके से खराब हुई खून की नसों में जाकर उन्हें जला दिया जाता है। इस इलाज से खून की नसों में अधिक तापमान देने से नसों को सिकुड़ दिया जाता है जिससे अब मरीज की टांग में खून का बहाव सामान्य अंदरूनी नसों से होता है। गौरतलब है कि इस सारे आॅप्ररेशन के वक्त मरीज पूरी तरह होश में होता है, डॉक्टर से बातचीत कर रहा होता है और अपना आॅपरेशन स्वयं होता हुआ देखता है।
डॉ. शिखा सूद ने बताया कि हिमाचल में इस तरह के कई मरीज हैं जो कि इस बीमारी के कारण लंबे समय से परेशान हैं। चूंकि एंडोवस्कयूलर एबलेटिव थेरेपी हिमाचल में नहीं है तो मरीजों को या तो सर्जरी करवानी पड़ती है या फिर वे लोग जांघ में स्टॉकिंग पहनकर इस बीमारी को ताउम्र झेलने पर मजबूर रहते हैं। चूंकि अब आईजीएमसी में इस बीमारी का इलाज करने में डॉ. शिखा सूद सक्षम हैं, तो उन्होंने सरकार से दरख्वास्त की है कि ऐसी बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली मशीनें खरीदी जाएं ताकि सस्ते दामों पर ऐसे मरीजों का उपचार संभव हो सके।
गौरतलब है कि डॉ. शिखा सूद गत वर्ष एम्स नई दिल्ली से गैस्ट्रोइंटरस्टाइनल रेडियोलॉजी में अपनी फैलोशिप करके आई हैं तथा तदोपरांत आईजीएमसी में बतौर एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। उनके आने के बाद आईजीएमसी में कई तरह के आॅपरेशन बिना चीरफाड़ संभव हो सके हैं जैसे कि पीटीबीडी विद इंटरनलाइजेशन, स्टंटिंग, ब्रेक्रेथेरपी, कॉइलिंग, पीपीएलबी, टीजेएलबी, पिकलाइन, स्कलैरोथेरेपी, पीआरपी ट्रीटमेंट, एंडोवस्कयूलर एबलेटिव थेरेपी, विभिन्न तरीकों की बॉयोपसी आदि। न केवल इंटरवेंशन्स में वरन डॉ. शिखा सूद रेडियोलॉजिकल डायग्नॉस में भी अव्वल हैं। वह अकेले ही आईजीएमसी के विभिन्न विभागों के डॉक्टर्स के साथ एम्स की तर्ज पर रेडियो कॉन्फ्रेंस करती हैं जिससे अन्य विभागों के डॉक्टर्स को भी मरीज के सही इलाज में दिशा मिलती है।
इस आॅपरेशन के दौरान उन्होंने अपने पीजी स्टूडेंट डॉ. शिवानी ठाकुर को पढ़ाया तथा उनके साथ रेडियोग्राफर तेजेंद्र, नर्सिंस सुनीता व ज्योति भी मौजूद रहे।
As colour can’t lose its ability to give colour after being broken several times. Similarly, I also can’t unlearn the art of spreading love and smile, after being broken, several times by my life !
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