December 28, 2024

अपने अस्तित्व को बचाने के लिए एकजुट हुआ किन्नौर, नो मीन्स नो…

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-सतलुज घाटी में सभी प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं को निरस्त करने लिए आवाज हुई बुलंद

द हिमाचल हेराल्ड, शिमला

26 अगस्त 2021 को जनजातीय जिला किन्नौर के जिला मुख्यालय रिकाङ्गापियो में हजारों जनजातिओं ने अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आह्वान रैली व जन सभा कर अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया। जिले के युवाओं द्वारा चलाये जा रहे लोकप्रिय “नो मीन्स नो” अभियान व हाल में बटसेरी व निगुलसेरी में हुये भू-स्खलन समूचे किन्नौर को एकजुट करने के मुख्य कारण रहे हैं। इस आह्वान रैली व जन सभा का आयोजन जिला किन्नौर के स्थानीय संगठनों; हिमलोक जागृति मंच, जिला वन अधिकार संघर्ष समिति, जंगी ठोपन पोवारी प्रभावित संघर्ष समिति व हंगरंग संघर्ष समिति के संयुक्त तत्वाधान से किया गया। जन सभा के दौरान किन्नौर जिला में सतलुज नदी में सभी प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं को निरस्त करने की मांग जोरों से उठी। 804 मेगावाट जंगी ठोपन परियोजना के विरोध में बात रखते हुये जंगी संघर्ष समिति के रोशन लाल नेगी ने कहा की ‘प्रशासन, सरकार और वैज्ञानिकों के साथ बहुत बात चीत हो चुकी है – अभी और नहीं।‘ वैज्ञानिक इन आपदाओं को लगातार कुदरती बताते हुये जल विद्युत परियोजनाओं को क्लीन चिट देते आए हैं। परंतु जंगी-ठोपन परियोजना का क्षेत्र खदूरा भूस्खलन का बड़ा ज़ोन है और ऐसे में किसी प्रकार कि छेड़ छाड़ करना इलाके और यहाँ के निवासियों के लिए घातक साबित होगा। हंगरंग संघर्ष समिति के शांता कुमार नेगी ने कहा कि जल विद्युत परियोजनाओं का विरोध करने पर राष्ट्र विरोधी जैसे लेबल स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं पर लगा कर कंपनी और प्रशासन मिल कर जनता को डराना और तोड़ना चाहते हैं। “हम एक लोकतंत्र में रहते हैं और हमारा संविधान जन जातीय क्षेत्रों को खास अधिकार देता है। पूंजीवादी मुनाफाखोर विकास कि अंधी दौड़ में न केवल पर्यावरण का विनाश हुआ बल्कि देश के अंदर असमानताएँ भी बढ़ीं हैं – इस माडल में कंपनियों का दबदबा चलता है और राजनैतिक पार्टियां इनके लिए बिचौलिये का काम करती हैं। “हमारे संसाधनों का बड़े पैमाने पर निजीकरण हो रहा है और इससे मुट्ठी भर कंपनियों का विकास हो रहा है और आम जनता को अपनी आजीविकाओं से हाथ धोना पड़ रहा है’, हिमधरा पर्यावरण समूह कि मांशी आशर ने कहा। हिमालय नीति अभियान के गुमान सिंह ने सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र में विनाशकारी विकास के माडल पर सवाल उठाते हुये कहा कि अगर आज सत्ता में बैठी सरकार ने किन्नौर में बांधों पर रोक नहीं लगाई तो वो इतिहास में उन्हें कातिल माना जाएगा ।

हिमाचल के जन जातीय क्षेत्रों में वन अधिकार कानून 2006 और नौतोड़ को लागू करने में सरकार के निराशाजनक रवैये पर भी मंच पर सभी वक्ताओं ने बात रखी। ज़िला वन अधिकार समिति के जिया लाल नेगी ने प्रशासनिक अधिकारियों पर निशाना दागते हुये कहा कि उनको कानून के प्रावधानों और मूल्यों के बारे में कोई समझ नहीं ये एसएचआरएम की बात है – ऊल जलूल आपत्तियाँ लगा कर दावों को वापिस कर देते हैं। जल जंगल जमीन पर कानूनी अधिकार दोनों पेसा और वन अधिकार कानून देते हैं और इनको लागू करने की मांग पिछले कई  वर्षों से हिमाचल के जन जातीय क्षेत्र के लोग उठा रहे हैं। “किन्नौर का संघर्ष पूरे जन जातीय क्षेत्र का आंदोलन है और लाहौल और स्पीति के लोग अपना पूरा समर्थन करते हुये इस आंदोलन को बाकी जन जातीय जिलों में भी आगे ले जाएंगे’, स्पीति सिविल सोसाइटी के ताकपा तेंजिन और सोनम तारगे ने कहा। जंगी क्षेत्र की निवासी और ज़िला परिषद सदस्य प्रिया ने कहा कि किन्नौआर का यह आंदोलन पार्टीबाजी से ऊपर उठ कर किन्नौरा अस्तित्व के लिए लड़ा जाएगा। खदरा गाँव और रारंग संघर्ष समिति के सुंदर नेगी ने मंच से आह्वान किया कि अगर सरकार ने हमारी मांग नहीं माने तो आने वाले चुनावों में इसका परिणाम किन्नौर कि जंता दिखा देगी। जनजातीय जिला होने के बावजूद जनजातीय कानूनों को ताख पर रख कर गैर जनजातीय व्यक्ति को जनजातीय संपत्ति का हस्तांतरण का मुद्दा भी खासा गरम और स्थानीय लोगों में रोष देखने को मिला।जन सभा के बाद जिला प्रशासन के माध्यम से प्रदेश के मुख्यमंत्री को 7 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन प्रेषित किया गया।