December 24, 2024

स्थानीय लोग नहीं चाहेंगे तो नहीं लगेगा जंगी-थोपन पावर प्रोजेक्ट

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-एसजेवीएन के सीएमडी नंदलाल शर्मा ने किया दावा
-बोले, वहां की जनता को दूसरे राज्यों की परियोजनाओं के विजिट पर ले जाएंगे
-पिछले चार वर्षों से जारी है इस क्षेत्र में विरोध

द हिमाचल हेराल्ड, शिमला
जिला किन्नौर की सतलुज बेसिन पर प्रस्तावित जंगी-थोपन बिजली परियोजना का विरोध पिछले चार वर्षों से हो रहा है। कई वर्षों से विवादों में रही जंगी-थोपन बिजली परियोजना को लेकर हल्ला बोल के बीच एसजेवीएन ने दावा किया है कि यदि स्थानीय लोग नहीं चाहेंगे तो प्रोजेक्ट नहीं लगेगा। शनिवार को शिमला में पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए एसजेवीएन के सीएमडी नंदलाल शर्मा ने कहा कि परियोजना क्षेत्रों के लोगों को मनाने का प्रयास कर रहे हैं। प्रोजेक्ट सर्वे स्टेज पर है और एसजेवीएन पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीके से निर्माण शुरू करेगा। बावजूद इसके वहां के लोग प्रोजेक्ट नहीं चाहेंगे तो हम प्रोजेक्ट नहीं लगाएंगे। उन्होंने कहा कि कोई भी गांव विस्थापित नहीं होगा। उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट निर्माण कार्य शुरू होने में अभी तीन से चार साल लग सकते हैं। अभी प्रोजेक्ट प्रस्तावित है और निर्माण से पहले सर्वे किया जा रहा है। जहां भी टनल, डैम, पावर हाउस स्थापित होंगे, सब जगहों का वैज्ञानिक बारीके से सर्वे पूरा होगा। सर्वे के बाद ही निर्माण कार्य शुरू होगा। एसजेवीएन का दावा है कि परियोजना क्षेत्र में विकास ही होगा न कि विनाश। इसके साथ-साथ हिमाचल प्रदेश पावर पॉलिसी के तहत प्रभावित गांव के परिवारों की नौकरी भी दी जाएगी। एसजेवीएन का कहना है कि लोगों को डरने की कोई जरूरत नहीं है। उल्लेखनीय है कि 804 मेगावॉट की क्षमता वाली जंगी-थोपन बिजली परियोजना का विरोध पिछले चार साल से जारी है।

जंगी-थोपन बिजली प्रोजेक्ट का इतिहास
जंगी थोपन प्रोजेक्ट का काम 17 साल यानी वर्ष 2006 से लटका हुआ है। वर्ष 2006 में राज्य सरकार ने इस प्रोजेक्ट का टेंडर किया था और ब्रेकल को यह प्रोजेक्ट मिला। ब्रेकल ने इसका काम अदानी कंपनी को दिया और अदानी कंपनी से अपफ्रंट मनी की 280 करोड़ की राशि सरकार को मिली। उसके बाद ये प्रोजेक्ट रिलायंस को दिया गया, लेकिन अपफ्रंट मनी के चक्कर में रिलायंस कंपनी भी पीछे हट गई। इसके बाद इस मसले पर तत्कालीन वीरभद्र सरकार ने 21 सितंबर 2016 को बड़ा फैसला लिया था। रिलायंस के पीछे हटने के बाद राज्य सरकार ने पीएसयू यानी पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग के साथ समझौता करने का फैसला किया, जिसके बाद ये प्रोजेक्ट एसजेवीएन को सौंप दिया गया।

281 हेक्टेयर पर 5708 करोड़ होंगे खर्च
जंगी-थोपन बिजली परियोजना पर अनुमानित 5708 करोड़ रुपए व्यय होने हैं। जानकारी के मुताबिक परियोजना के लिए अनुमानित 281.16 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होगी, जिसमें से 247.12 हेक्टेयर भूमि वन भूमि होगी, जबकि 24.81 हेक्टेयर निजी भूमि तथा 9.23 हेक्टेयर बीआरओ व लोक निर्माण विभाग से उपलब्ध होगी। बता दें कि परियोजना के तहत जंगी गांव के नजदीक बांध प्रस्तावित है, जबकि भूमिगत पावर हाऊस का निर्माण काशंग नाला में किया जाएगा। परियोजना से कानम, जंगी, रारंग, मूरंग, स्पीलो व अकपा पंचायतें प्रभावित होंगी। परियोजना के तहत बनने वाली सुरंग आधुनिक तकनीक टीवीएम से बनाई जाएगी। प्रदेश सरकार के ऊर्जा विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक परियोजना निर्माण के समय प्रभावितों के हितों का पूरी तरह से संरक्षण सुनिश्चित किया जाएगा।

आंदोलन की राह पर जनता, मंजूर नहीं प्रोजेक्ट
प्रस्तावित जंगी-थोपन जल विद्युत परियोजना को लेकर जंगी, रारंग व आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने जमकर विरोध करना शुरू कर दिया है। हाल ही में जल विद्युत परियोजना के प्रबंधन द्वारा जंगी-थोपन परियोजना के निमार्णाधीन स्थल पर संबंधित पंचायतों के एनओसी के बिना मशीनों को काम के लिए उतारा गया, जिस पर ग्रामीणों ने जमकर विरोध किया। वैसे तो पहाड़ की टूट फूट प्रकृति का चक्र है, लेकिन बीते वर्षों मे भू-स्खलन की घटनाएं बढ़ने से लोगों में डर है। जंगी व रारंग के ग्रामीणों की माने तो विरोध की शुरुआत तब हुई जब परियोजना प्रबंधन ने बिना पंचायत एनओसी काम शुरू करना चाहा। ग्रामीणों ने बताया कि बिना पंचायत की अनुमति के बड़ी-बड़ी मशीनें लाई गईं हालांकि एसजेवीएन का तर्क है जंगी-थोपन जल विद्युत परियोजना प्रबंधन द्वारा केवल सर्वे किया जा रहा है और सर्वे के लिए एनओसी की जरूरत नहीं होती पर ग्रामीण इस तर्क को सफेद झूठ करार दे रहे हैं। ग्रामीणों ने सड़क पर उतर कर इसका विरोध किया है। पिछले साल ग्रामीणों व प्रबंधन के बीच नोकझोंक भी हुई थी। परियोजना प्रबंधन द्वारा फिलहाल सर्वे के काम को भी रोक दिया गया है आगे की कार्रवाई सरकार के दिशा-निदेर्शों के बाद ही शुरू होगी।