द हिमाचल हेराल्ड शिमला
हिमाचल प्रदेश कला संस्कृति भाषा अकादमी के साहित्य कला संवाद कार्यक्रम में विश्व रंगमंच दिवस की संध्या पर विख्यात रंगकर्मी फिल्म, टीवी, वेब सीरिज अभिनेता यशपाल शर्मा ने अपनी रंगमंच यात्रा के संस्मरण सांझा किए। उन्होंने कहा कि नाटक करना हो तो शिद्दत से करो, बहाने या वजहों को बीच में लाकर नाटक जैसे उच्च कोटि के कार्य को हिनता प्रदान न करें।
उन्होंने कहा कि अगर नाटक हो सके तो करो न हो सके तो न करो। उन्होंने कहा कि नाटक का ही कमाल है कि अभाव में भी वो बेमिसाल काम करने का भाव पैदा करता है। उन्होंने कहा कि लेविश थियेटर करने को मिले तो अवश्य करो किंतु अगर परिस्थितियां विपरित हो तो परिस्थितियों से हटो नहीं बल्कि डटे रहो, यही रंगमंच का अनुशासन है।
उन्होंने बताया कि रंगमंच में अपने किरदार में बने रहने के लिए हमें उस स्थिति व वातावरण के दायरे में रह कर उस अनुभूति को आत्मसात करना चाहिए ताकि मंच पर अभिनय कर हम दर्शकों तक असर छोड़ने में कामयाब हो सके। उन्होंने अपने जीवन के शुरूआती दिनों को याद करते हुए कहा कि न जाने कब ट्यूशन पढ़ाते, आॅफिस में टाईप करते, चंादी की दुकान में काम करते फिर नाटकों की रिहसल फिर देर रात घर आकर दीवार फांद कर रूखा-सूखा खाकर सो जाना कैसे नाटकों की शुरूआत हुई कुछ पता ही नहीं चला। यह सिलसिला बढ़ता गया और रंगकर्म का काफिला चलता गया।
बम्बई आने वाले नवोदित कलाकारों को सीख देते हुए यशपाल कहते है कि बम्बई आओ किंतु धीरज, धैर्य व सब्र का समावेश कलाकार में होना आवश्यक है। यदि नवोदित कलाकार को काम न मिले तो वो भावावेष में फंस जाता है। इससे उसके दिमाग पर विपरित प्रभाव पड़ता है। यशपाल कहते हैं कि ऐसे समय में अभिनेता को उस खाली समय का सदुपयोग करना चाहिए। ऐसे में अभिनेता अच्छा साहित्य पढ़े, अपने दिमाग को कुशाग्र करे तथा अच्छी फिल्मों का अवलोकन कर अपनी अभिनय क्षमता और व्यक्तित्व में निखार लाने का प्रयास करना चाहिए। शारीरिक दक्षता को प्रबल बनाकर आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए अपने को तैयार करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बम्बई में प्रत्येक काम के लिए हां के साथ-साथ अपने कार्य के दृष्टिकोण को सार्थक करने के लिए ‘न’ कहने का साहस भी कलाकार को आना चाहिए। ओटीटी पर जिस प्रकार से फुहड़ता और भध्धापन को प्रदर्शित किया जा रहा है, उसके प्रति उन्होंने नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि इस पर लगाम लगाना जरूरी है और फिल्म निर्माताओं के तहत यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा कि नाटक मेरी रगोे में रचा बसा संसार है, जो कभी भी मुझसे अलग नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि हरियाणा की उनकी दो फिल्मों को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तथा एक लम्बे शोध के बाद उनके द्वारा बनाई गई फिल्म दादालखमी को राजस्थान फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट म्यूजिकल फिल्म रिजिनल सिनेमा का खिताब हासिल हुआ।
उन्होंने कहा कि इन फिल्मों में उन्होंने रंगमंच का भाव जगाया है। हिमाचल प्रदेश को उन्होंने फिल्म निर्माण के हिसाब से अतुल्य नैसर्गिक सौदन्र्य का क्षेत्र बताया। उन्होंने कहा कि कुदरत ने यहां हर ओर फिल्म के सेट लगाए हैं, कैमरा कहीं भी रख लीजिए, अभिनय आरम्भ किजिए और फिल्म पूरी हो जाएगी। हिमाचल प्रदेश में उनके द्वारा अभिनित फिल्म करीम मोहम्मद, वन रक्षक और भ्रीणा जो पवन शर्मा के निर्देशन में बनी थी, के दौरान अपने कार्य अनुभव सांझा किए।
उन्होंने कहा कि हिमाचल में लोगों को फिल्म बनाने के लिए आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा कि फिल्म निर्माण प्रक्रिया एक टीम वर्क का हिस्सा है, जिसमें समन्वय व सहयोग नितांत आवश्यक है। दादालखमी फिल्म के सम्पूर्ण निर्माण के लिए वो अपनी उस टीम के प्रति हमेशा कृतज्ञ भाव प्रकट करते हैं।
उन्होंने कहा कि रंगमंच फिल्म या कोई भी विधा तभी आगे बढ़ सकती है अगर उसके प्रति सच्चा समर्पण, प्रतिबद्धता और संकल्पना के साथ कार्य किए जाए।
कार्यक्रम का संचालन कर रही दक्षा शर्मा ने अपने संवादों में मधुरता लाने और आंचलिकता के एक्सेंट को खत्म करने के लिए बतौर अभिनेता विभिन्न वाईस एक्सरसाईज और कथ्य के प्रति गंभीरतापूर्वक प्रयास व रियाज करने का मार्ग सुझाया जो अत्यंत सराहनीय था।
कला संवाद की निरंतरता को बनाए रखने के लिए इस कार्यक्रम की रीढ़ की हड्डी हितेन्द्र ने भी कुछ रंगमंच और फिल्म के ज्वल्लंत मुद््दों को प्रभावी रूप से उठाया, जिसका यशपाल ने सहजता से जवाब दिया।
As colour can’t lose its ability to give colour after being broken several times. Similarly, I also can’t unlearn the art of spreading love and smile, after being broken, several times by my life !
Boasting a rich and dynamic career of over 18 years in journalism. A “journalist” usually works for an organization such as a newspaper or radio or TV station. They are hired to cover news events and present the information in a timely (and hopefully accurate) manner. There are free lance journalists who sell stories to independent companies.
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